(राष्ट्रीय मुद्दे) बाघ संरक्षण (Tiger Conservation)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): रवि सिंह (महासचिव - WWF), सतीश जैकब (वरिष्ठ पत्रकार)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, आंध्र प्रदेश के नागार्जुनसागर श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व (NSTR) में बाघों की संख्या में वृद्धि देखी गई। टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन (TCF) द्वारा किए गए ठोस प्रयासों के चलते बाघों की संख्या में यह इजाफा हुआ है। इसके अलावा, बीते 29 जुलाई को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया गया। ये दिवस बाघों के संरक्षण के सम्बन्ध में जागरूकता फैलाने के लिहाज से मनाया जाता है। इस मौके पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा बाघों की संख्या को लेकर एक रिपोर्ट भी जारी किया था। देश का राष्ट्रीय पशु होने के नाते बाघ भारत के लिए खास अहमियत रखता है।
'ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन 2018'
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस बाघों के संरक्षण के सम्बन्ध में जागरूकता फैलाने के लिहाज से मनाया जाता है। इस मौके पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा बाघों की संख्या को लेकर एक रिपोर्ट जारी किया गया। 'ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन 2018' शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2014 के मुकाबले देश में बाघों की तादाद में 741 की बढ़ोतरी हुई है। मौज़ूदा वक्त में ये संख्या 2967 पर पहुंच चुकी है। इन्हीं परिणामों से उत्साहित होकर टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन ने अपने प्रयासों को और गति दिया है जिसका सकारात्मक परिणाम आंध्र प्रदेश में बाघों की संख्या में वृद्धि के तौर पर देखा जा सकता है।
कैसे की गई गणना?
बाघों की गिनती करने का काम भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा किया गया। इसमें देश भर के टाइगर रिज़र्व, राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्यों में उपलब्ध बाघों की संख्या का आकलन किया गया।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, बाघों की संख्या में 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि अब तक की सर्वाधिक वृद्धि है।
- इस बार बाघों की गणना के लिए अट्ठाईस मानकों का उपयोग किया गया है जिसमें एक साल या उससे बड़े बाघों को शामिल किया गया है।
- इनमें गिनती के लिए दायरे में विस्तार से लेकर सर्वे के आकार तक में वृद्धि की गई।
- विशेषज्ञों के मुताबिक दुनिया भर में बाघों के लिए इतना बड़ा सर्वे किसी देश में नहीं होता है।
- इस बार के सर्वे में बाघों वाले 20 राज्यों में 3 लाख 81 हजार 400 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में बाघों की गणना की गई।
- इसमें डेढ़ सालों के अंतराल में 26,838 स्थानों पर कैमरा ट्रैप का उपयोग किया गया। जिसमें कैप्चर-मार्क-रिकैप्चर पद्धति के ज़रिए प्राप्त कुल 3.5 करोड़ तस्वीरों में से 76,651 तस्वीर बाघों के पाए गए।
- इसके बाद पैटर्न रिकोग्निशन प्रोग्राम के माध्यम से बाघों की व्यक्तिगत पहचान की गई।
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस
दुनिया भर में बाघों की घटती जनसंख्या को देखते हुए इन्हें संरक्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम प्रयास शुरू किये गए। इसी कड़ी में, साल 2010 में सेंट पिट्सबर्ग में एक 'बाघ समिट' का आयोजन किया गया। इस समिट में साल भर में एक दिन बाघों को समर्पित करने का निर्णय लिया गया। ‘पैन्थेरा टाइग्रीस’ के वैज्ञानिक नाम वाले इस जीव के लिए 29 जुलाई की तारीख तय की गई। तभी से इस दिन को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
साथ ही, इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले 13 देशों ने ये वादा किया कि साल 2022 तक वे बाघों की आबादी दुगुनी कर देंगे। ग़ौरतलब है कि भारत ने अपना यह लक्ष्य तय वक्त से 4 साल पहले ही प्राप्त कर लिया।
क्यों घट रही है बाघों की तादाद?
दुनिया भर में बाघों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें साइबेरियन टाइगर, बंगाल टाइगर, इंडोचाइनीज टाइगर, मलायन टाइगर और सुमात्रन टाइगर काफ़ी ख़ास हैं। ग़ौरतलब है कि बाली टाइगर, कैस्पियन टाइगर, जावन टाइगर जैसी प्रजातियां अब विलुप्त हो चुकी हैं।
- बाघों का ज्यादातर पर्यावास वन क्षेत्रों में होता है लेकिन मौज़ूदा वक़्त में जंगलों की अंधाधुंध कटाई के चलते बाघों के पर्यावास पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ा है। इसलिए वन क्षेत्रों को बढ़ाना और संरक्षित रखना बाघ संरक्षण के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
- इसके अलावा बाघों के शारीरिक अंगों के लिए उनका अवैध शिकार और जलवायु परिवर्तन जैसी दूसरी मुश्किलें भी हैं।
- बाघों के पर्यावास वाले इलाकों में इंसानी आबादी के दख़ल के कारण हालात बिगड़ते चले गए और ये चुनौती आज भी बनी हुई है।
- इसके अलावा, जिस सुंदरबन को बाघों के लिए सबसे मुफ़ीद जगहों में से एक माना जाता रहा है, वहां भी बढ़ते समुद्री सतह ने बाघों के अस्तित्व के सामने संकट पैदा कर दिया है।
- जाहिर है कि ऐसे हालातों पर लगाम न लग पाने की वजह से ही बाघ इंसानों के रिहाइश की ओर रुख कर लेते हैं। इस कारण इंसान और बाघों के बीच टकराव की स्थिति देखने को मिलती है।
- इंसान और बाघों के बीच टकराव के इस तरह के और भी कारण हैं। हाल ही में, पीलीभीत में एक बाघिन की ग्रामीणों द्वारा पीट-पीटकर की गई हत्या इसी तरह का एक उदाहरण है।
प्रोजेक्ट टाइगर
बाघों के संरक्षण के लिहाज से साल 1973 में केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर योजना की शुरुआत की थी। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत में उपलब्ध बाघों की संख्या के वैज्ञानिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और पारिस्थिक मूल्यों का संरक्षण सुनिश्चित करना है। इसके तहत अब तक 50 टाइगर रिजर्व बनाए जा चुके हैं।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण पर्यावरण मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है। साल 2006 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों में संशोधन कर बाघ संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना की गई। इसका प्रमुख काम प्रोजेक्ट टाइगर का क्रियान्वयन करना है।
बाघ संरक्षण को लेकर और क्या किया गया है?
बाघों के सीमा पार अवैध व्यापार को रोकने के लिए भारत ने नेपाल के साथ एक सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। साथ ही, इस संबंध में चीन और बांग्लादेश के साथ भी एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया गया है।
बाघों के बहुतायत वाले देशों ने एक ग्लोबल टाइगर फोरम का गठन किया है। इसका उद्देश्य बाघों के संरक्षण के संबंध में अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को हल करना है।
बाघ संरक्षण के संबंध में तीसरे एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में ‘बाघ संरक्षण पर नई दिल्ली प्रस्ताव’ स्वीकार किया गया।
निष्कर्ष
यह राहत भरी बात है कि इस ताजा सर्वेक्षण में बाघों की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि अभी भी खतरा टला नहीं है।